आइए देखें बिहार की शिक्षा व्यवस्था की बदहाली के प्रमुख कारण: इतिहास से लेकर समकालीन चुनौतियाँ

बिहार, जिसने कभी नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों के माध्यम से विश्व को शिक्षा का प्रकाश दिया, आज अपनी शिक्षा व्यवस्था की बदहाली के लिए चर्चा में है। 2023–24 में बिहार की साक्षरता दर 74.3% है, जो राष्ट्रीय औसत 77.7% से कम है। उच्च ड्रॉपआउट दर, खराब बुनियादी ढांचा, और शिक्षक की कमी जैसे मुद्दे इस स्थिति को और जटिल बनाते हैं। यह लेख बिहार की शिक्षा व्यवस्था की बदहाली के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करता है, जिसमें ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, कम राजनीतिक प्रेरणा, खराब नेतृत्व, और जागरूकता की कमी शामिल है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: गौरवशाली अतीत से पतन की ओर

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बिहार का शैक्षिक इतिहास गौरवशाली रहा है। प्राचीन काल में नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों ने विश्व भर के विद्वानों को आकर्षित किया। हालांकि, औपनिवेशिक काल और स्वतंत्रता के बाद की अवधि में शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान कम हुआ। स्वतंत्रता के बाद, बिहार में शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी गई, और संसाधनों का आवंटन अन्य क्षेत्रों में केंद्रित रहा। 1970 के दशक में शुरू हुए छात्र आंदोलनों ने शिक्षा में भ्रष्टाचार और गिरावट को उजागर किया, लेकिन सुधार के ठोस प्रयास सीमित रहे। 1980 और 1990 के दशक में, सामाजिक-आर्थिक अस्थिरता और जातिगत राजनीति ने शिक्षा को और हाशिए पर धकेल दिया।

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कम राजनीतिक प्रेरणा

बिहार में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली का एक प्रमुख कारण कम राजनीतिक इच्छाशक्ति है। कई दशकों तक, शिक्षा सरकार की प्राथमिकता में नहीं रही। प्रशांत किशोर जैसे विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि बिहार में शिक्षा बजट (लगभग 40,000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष) का उपयोग प्रभावी ढंग से नहीं हुआ। इसके बजाय, शिक्षा विभाग अक्सर अल्पकालिक योजनाओं और प्रचार पर केंद्रित रहा, जैसे कि मिड-डे मील योजना, जिसे कुछ लोग शिक्षा की गुणवत्ता के बजाय उपस्थिति बढ़ाने का साधन मानते हैं।

  • नीतिगत असंगति: 1970 के दशक में करपूरी ठाकुर द्वारा अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त करने का निर्णय, हालांकि बहुजन वर्ग की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए था, ने दीर्घकाल में बिहार के छात्रों को आधुनिक प्रतिस्पर्धी दुनिया से पीछे छोड़ दिया। अंग्रेजी की कमी ने नौकरी के अवसरों को सीमित किया, खासकर बहुजन और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए।
  • चुनावी प्राथमिकताएँ: शिक्षा जैसे दीर्घकालिक मुद्दे अक्सर जाति, धर्म, और तात्कालिक लोकलुभावन योजनाओं के सामने गौण हो जाते हैं।

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खराब नेतृत्व और प्रशासनिक अक्षमता

शिक्षा व्यवस्था में खराब नेतृत्व और भ्रष्टाचार ने स्थिति को और बिगाड़ा है। स्थानीय प्रशासन में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, और अधिकारियों की अनुपस्थिति आम रही है। क्लस्टर रिसोर्स सेंटर समन्वयक जैसे पदों पर कार्यरत कर्मचारी अक्सर केवल उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन करते हैं, स्कूलों की जरूरतों पर ध्यान देने के बजाय।

  • शिक्षक भर्ती में अनियमितताएँ: शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में देरी और भ्रष्टाचार ने योग्य शिक्षकों की कमी को बढ़ाया। उदाहरण के लिए, 94,000 प्रारंभिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया वर्षों से अटकी रही।
  • निष्क्रिय निगरानी: विद्यालय शिक्षा समितियों और निरीक्षण तंत्र की निष्क्रियता ने शिक्षकों की अनुपस्थिति और खराब प्रदर्शन को अनियंत्रित छोड़ दिया।

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जागरूकता की कमी

बिहार में शिक्षा के प्रति सामाजिक जागरूकता की कमी एक महत्वपूर्ण बाधा है। विशेष रूप से निम्न मध्यवर्गीय और ग्रामीण परिवारों में, शिक्षा, खासकर लड़कियों की शिक्षा, को प्राथमिकता नहीं दी जाती।

  • लड़कियों की शिक्षा: अदालतगंज जैसे शहरी स्लम क्षेत्रों में भी, परिवार लड़कों की तुलना में लड़कियों की शिक्षा को कम महत्व देते हैं। 12वीं के बाद लड़कियों की पढ़ाई अक्सर शादी या घरेलू कामों के कारण रुक जाती है।
  • आर्थिक दबाव: गरीबी के कारण कई परिवार बच्चे को स्कूल भेजने के बजाय मजदूरी या अन्य कार्यों में लगाते हैं, जिससे ड्रॉपआउट दर (83% माध्यमिक स्तर पर) बढ़ती है।
  • सामाजिक मान्यताएँ: ग्रामीण क्षेत्रों में, शिक्षा को तात्कालिक आर्थिक लाभ से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसके कारण स्कूलों में उपस्थिति कम रहती है।

बुनियादी ढांचे की कमी

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बिहार के सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी एक प्रमुख समस्या है।

  • अपर्याप्त स्कूल भवन: कई ग्रामीण स्कूलों में कक्षाओं की कमी, बिजली, शौचालय, और साफ पेयजल की अनुपस्थिति है। 2016 में केवल 0.8% स्कूलों में कंप्यूटर थे।
  • प्रयोगशालाएँ और पुस्तकालय: ग्रामीण स्कूलों में आधुनिक प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों का अभाव है, जिससे विज्ञान और अन्य विषयों में व्यावहारिक शिक्षा प्रभावित होती है।
  • खराब गुणवत्ता: स्कूल भवनों का निर्माण अक्सर स्कूल प्रबंध समितियों (SMC) द्वारा किया जाता है, जो तकनीकी रूप से सक्षम नहीं होतीं, जिसके परिणामस्वरूप खराब गुणवत्ता वाले भवन बनते हैं।

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शिक्षकों की कमी और गुणवत्ता

बिहार में शिक्षकों की कमी और उनकी गुणवत्ता एक गंभीर समस्या है।

  • शिक्षक-छात्र अनुपात: बिहार में औसतन 63 छात्रों पर एक शिक्षक उपलब्ध है, जबकि राष्ट्रीय औसत 40 है।
  • अनुबंध शिक्षक: अनुबंध पर नियुक्त शिक्षकों को कम वेतन और नौकरी की असुरक्षा के कारण प्रेरणा की कमी होती है, जिसका असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ता है।
  • प्रशिक्षण की कमी: शिक्षकों का प्रशिक्षण पुरानी पद्धतियों पर आधारित है, और डिजिटल शिक्षा के कौशल की कमी है।

नकल और परीक्षा कदाचार

बिहार में बोर्ड परीक्षाओं में नकल और पेपर लीक की घटनाएँ शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती हैं।

  • नकल की संस्कृति: हर साल लाखों छात्र नकल के सहारे पास होते हैं, और कुछ परिवार घूसखोरी का सहारा लेते हैं।
  • प्रणालीगत कमियाँ: नकल की घटनाएँ शिक्षा विभाग की निगरानी और जवाबदेही की कमी को दर्शाती हैं।

सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ

बिहार की सामाजिक-आर्थिक संरचना शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित करती है।

  • आर्थिक असमानता: गरीब और वंचित समुदायों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, जबकि समृद्ध परिवार निजी स्कूलों को प्राथमिकता देते हैं।
  • जातिगत भेदभाव: अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्गों के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सीमित है।
  • लैंगिक भेदभाव: लड़कियों की शिक्षा को कम महत्व देने की प्रवृत्ति, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, ड्रॉपआउट दर को बढ़ाती है।

निदान के लिए सुझाव

  1. राजनीतिक प्राथमिकता: शिक्षा को सरकार की प्राथमिकता बनाना, और बजट का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करना।
  2. शिक्षक प्रशिक्षण: डिजिटल और आधुनिक शिक्षण पद्धतियों पर प्रशिक्षण, और अनुबंध शिक्षकों की स्थिति में सुधार।
  3. बुनियादी ढांचे में निवेश: सभी स्कूलों में बिजली, इंटरनेट, शौचालय, और प्रयोगशालाएँ सुनिश्चित करना।
  4. जागरूकता अभियान: लड़कियों और वंचित समुदायों की शिक्षा के लिए सामाजिक जागरूकता बढ़ाना।
  5. नकल पर नियंत्रण: कठोर निगरानी और पारदर्शी परीक्षा प्रणाली लागू करना।
  6. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का कार्यान्वयन: प्री-प्राइमरी शिक्षा और समग्र विकास पर जोर देना।

निष्कर्ष

बिहार की शिक्षा व्यवस्था की बदहाली ऐतिहासिक उपेक्षा, कम राजनीतिक प्रेरणा, खराब नेतृत्व, जागरूकता की कमी, और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं का परिणाम है। हालांकि, हाल के सुधारों जैसे मुख्यमंत्री निश्चय योजना और बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना ने कुछ प्रगति दिखाई है। फिर भी, दीर्घकालिक सुधार के लिए शिक्षा को राजनीतिक और सामाजिक प्राथमिकता बनाना, बुनियादी ढांचे में निवेश, और शिक्षकों की गुणवत्ता बढ़ाना आवश्यक है। बिहार का गौरवशाली अतीत शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्जनन की संभावना को दर्शाता है, बशर्ते ठोस और निरंतर प्रयास किए जाएँ।

For More details please visit official website :- Education Department – Government of Bihar

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