औरंगज़ेब: विवादित मुग़ल सम्राट और उनकी आधुनिक प्रासंगिकता

परिचय
औरंगज़ेब आलमगीर, छठे मुग़ल बादशाह (1658–1707), इतिहास के सबसे विवादास्पद शासकों में से एक हैं। उन्होंने मुग़ल साम्राज्य को अपने चरम पर पहुँचाया, लेकिन उनकी धार्मिक नीतियों ने उन्हें एक कट्टर शासक के रूप में भी चर्चित किया। आजकल, औरंगज़ेब एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं। सोशल मीडिया और राजनीतिक बहसों में उनका नाम गूँज रहा है। लेकिन सवाल यह है कि 17वीं सदी के इस शासक की चर्चा आज क्यों हो रही है? आइए, उनके इतिहास और उनके प्रासंगिक होने के कारणों को समझते हैं।

औरंगज़ेब का शासन: शक्ति और विरोधाभास

औरंगज़ेब ने अपने पिता शाहजहाँ को कैद करके और अपने भाइयों को हराकर सिंहासन हासिल किया। उनके 49 साल के शासन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ थीं:

  • सैन्य विस्तार: उनके शासन में मुग़ल साम्राज्य अफ़गानिस्तान से दक्षिण भारत तक फैल गया, जिसमें दक्कन के सल्तनत भी शामिल थे।
  • प्रशासनिक कुशलता: वह एक अनुशासित शासक थे, जिन्होंने केंद्रीकृत शासन व्यवस्था को मज़बूत किया और विस्तृत रिकॉर्ड रखे।
  • विवादास्पद नीतियाँ: गैर-मुस्लिमों पर जज़िया कर लगाना, कुछ हिंदू मंदिरों (जैसे काशी विश्वनाथ) को तोड़ना, और शरिया कानून लागू करने जैसे फ़ैसलों ने कई लोगों को नाराज़ कर दिया। इससे सिखों और मराठों जैसे विद्रोह भड़के।

हालाँकि, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उनकी नीतियाँ धार्मिक कट्टरता के बजाय राजनीतिक थीं, जिनका उद्देश्य सत्ता को मज़बूत करना था। उन्होंने बनारस जैसे क्षेत्रों में हिंदू मंदिरों को दान दिया और हिंदू अधिकारियों को नियुक्त किया, जो उनकी छवि को एक जटिल शासक के रूप में पेश करता है।

औरंगज़ेब आजकल चर्चा में क्यों हैं?

  1. राजनीतिक प्रतीकात्मकता: भारत में, औरंगज़ेब की विरासत को धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता की बहसों में इस्तेमाल किया जाता है। उनकी नीतियों को अत्याचार का उदाहरण बताया जाता है, जबकि हिंदू राष्ट्रवादी समूह उनके शासन को ऐतिहासिक पीड़ा के नैरेटिव के रूप में पेश करते हैं, जो आज की सांस्कृतिक नीतियों को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल होता है।
  2. ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन: इतिहासकार और लेखक औरंगज़ेब के शासन को नए सिरे से परख रहे हैं। ऑड्रे ट्रश्के की किताब औरंगज़ेब: द मैन एंड द मिथ जैसे काम उनकी रूढ़िवादी छवि को चुनौती देते हैं, और उन्हें एक जटिल व्यक्तित्व के रूप में पेश करते हैं। यह पारंपरिक और आधुनिक विचारधाराओं के बीच बहस को जन्म देता है।
  3. स्मारकों को लेकर विवाद: वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद जैसे स्थलों पर विवाद, जिसे औरंगज़ेब के शासनकाल में एक मंदिर के ऊपर बनाया गया था, उन्हें सुर्ख़ियों में बनाए रखता है। अदालती मामले और पुरातात्विक सर्वे उनकी विरासत पर चर्चा को फिर से जीवित करते हैं।
  4. पॉप कल्चर और मीडिया: मुग़ल इतिहास पर आधारित हाल के डॉक्यूमेंट्री और टीवी शो, जैसे नेटफ़्लिक्स की एम्पायर, औरंगज़ेब को युवा पीढ़ी के सामने ला रहे हैं। मीम्स और सोशल मीडिया पोस्ट्स में आधुनिक नेताओं की तुलना औरंगज़ेब से की जाती है, जो उनकी लोकप्रियता को बढ़ाता है।
  5. राजनीतिक भाषण: नेता औरंगज़ेब का उल्लेख करके अपने विरोधियों की आलोचना करते हैं। उदाहरण के लिए, 2022 में एक राजनेता ने अपने विरोधियों की तुलना औरंगज़ेब से की, ताकि उनके अधिनायकवादी रवैये को उजागर किया जा सके। यह दर्शाता है कि इतिहास को आज की राजनीति में कैसे इस्तेमाल किया जाता है।
  6. जगहों के नाम बदलने की प्रवृत्ति: हाल के वर्षों में, भारत में कई सड़कों और शहरों का नाम, जो औरंगज़ेब से जुड़ा था, बदला गया है। इससे ऐतिहासिक विरासत और नाम परिवर्तन की प्रासंगिकता को लेकर बहस छिड़ गई है।
  7. धार्मिक और सांस्कृतिक चर्चाएँ: औरंगज़ेब की धार्मिक नीतियाँ आज भी संवेदनशील विषय बनी हुई हैं। उनके कार्यों को समकालीन चर्चाओं में धार्मिक सहिष्णुता और ऐतिहासिक न्याय से जोड़ा जाता है।

  निष्कर्ष

औरंगज़ेब की विरासत जटिल है और आज भी इतिहास, राजनीति और संस्कृति पर प्रभाव डालती है। कोई उन्हें एक कठोर शासक मानता है, तो कोई उन्हें एक   धर्मपरायण सम्राट के रूप में देखता है। जैसे-जैसे उनके शासन से जुड़े विवाद सामने आते हैं, यह ज़रूरी है कि ऐतिहासिक स्रोतों का निष्पक्ष विश्लेषण किया जाए और     उनके शासन से जुड़ी विभिन्न धारणाओं को समझा जाए।

आपका औरंगज़ेब के शासन के बारे में क्या विचार है? हमें कमेंट में बताएँ!

 

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