जनांकिकीय आपदा और जनांकिकीय लाभांश ( Demographic disaster to demographic dividend )

11 जुलाई को मनाए जाने वाले विश्व जनसंख्या दिवस के बहाने भारत के लिये वर्ष 1989 (जब संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस की घोषणा की थी) से अब तक के अपने जनांकिकीय विकास पर विचार करने का अवसर है, जिस विषय में वह विभिन्न चुनौतियों और असमानताओं का सामना करता रहा है।

अमेरिकी जीवविज्ञानी पॉल राल्फ एर्लिच (Paul Ralph Ehrlich) ने अपनी कृति ‘द पॉपुलेशन बॉम’ (1968) में भारत की निकट भविष्य में अपनी आबादी का पेट भर सकने की क्षमता के बारे में गंभीर सवाल उठाए थे, हालाँकि हरित क्रांति ने परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया। अत्यधिक जनसंख्या के कारण व्यापक कठिनाई की पूर्व की आशंकाओं के बावजूद एक संवहनीय भविष्य की सुनिश्चितता के लिये जनांकिकीय बदलाव को समझने और उसे प्रबंधित करने के माध्यम से वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्य (SDGs) की दिशा में देश की प्रगति उल्लेखनीय है।

भारत में एक गतिशील युवा जनसांख्यिकी मौजूद है जो यदि पर्याप्त रूप से शिक्षित, कुशल, स्वस्थ एवं रोज़गार-संपन्न हो तो राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने में सक्षम है। हालाँकि, यह आशंका भी मौजूद है कि भारत इस जनांकिकीय बदलाव का पूरा लाभ नहीं उठा पाएगा।

जनांकिकीय लाभांश (Demographic Dividend) से क्या अभिप्राय है?
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की परिभाषा के अनुसार, जनसांख्यिकी लाभांश “आर्थिक विकास की वह क्षमता है जो जनसंख्या की आयु संरचना में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकती है, मुख्यतः तब जब कार्यशील आयु वर्ग (15 से 64) की जनसंख्या में हिस्सेदारी गैर-कार्यशील आयु वर्ग (14 वर्ष और उससे कम तथा 65 वर्ष और उससे अधिक) की जनसंख्या में हिस्सेदारी से अधिक हो।”
भारत ने वर्ष 2005-06 में जनांकिकीय लाभांश अवसर खिड़की में प्रवेश कर लिया था और वर्ष 2055-56 तक वहाँ बना रहेगा।
भारत की लगभग 68% जनसंख्या 15 से 64 आयु वर्ग की है, जबकि 26% जनसंख्या 10-24 आयु वर्ग में शामिल है। इससे भारत विश्व के सबसे युवा देशों में से एक बन गया है।
उल्लेखनीय है कि भारत की जनसंख्या अपेक्षाकृत युवा है और इसकी औसत आयु 28.4 वर्ष है।
इसके अलावा, भारत में वर्ष 2030 तक कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्तियों की संख्या 1.04 बिलियन होगी। इसी प्रकार, भारत का निर्भरता अनुपात वर्ष 2030 तक इसके इतिहास के न्यूनतम स्तर (31.2%) पर होगा।
अगले दशक में वैश्विक कार्यबल में लगभग 24.3% की वृद्धि के साथ भारत विश्व में मानव संसाधन का सबसे बड़ा प्रदाता बना रहेगा।
भारत अपने जनांकिकीय लाभांश को किस प्रकार साकार कर रहा है?
युवा केंद्रित नीति: भारत की 50% से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है, जबकि 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है।
युवाओं की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये भारत सरकार ने राष्ट्रीय युवा नीति-2014, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम, युवा (युवा लेखकों के मार्गदर्शन के लिये प्रधानमंत्री योजना), राष्ट्रीय युवा सशक्तीकरण कार्यक्रम योजना आदि कई योजनाएँ क्रियान्वित की हैं।
शिक्षा में निवेश: भारत की समग्र साक्षरता दर 74.04% है जो वैश्विक औसत 86.3% से कम है।
निम्न साक्षरता की समस्या को संबोधित करने के लिये सर्व शिक्षा अभियान (SSA), शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA), राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA), मध्याह्न भोजन योजना, ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, प्रधानमंत्री श्री स्कूल आदि कई योजनाएँ क्रियान्वित की गई हैं।
कुशल कार्यबल: भारत स्नातक कौशल सूचकांक (India Graduate Skill Index) 2023 के अनुसार, लगातार इस बात की पुष्टि हुई है कि लगभग 45-50% भारतीय नव स्नातकों में उद्योग मानकों के अनुरूप रोज़गार-योग्यता (employability) का अभाव है।
इस परिदृश्य में लोगों को कौशल प्रदान करने और उनके कौशल उन्नयन के लिये सरकार द्वारा प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), रोज़गार मेला, प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (PMKK), उड़ान, प्रशिक्षु अधिनियम 1961 के तहत प्रशिक्षुता प्रशिक्षण, महिलाओं के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, कौशल ऋण योजना, भारतीय कौशल संस्थान (IISs), संकल्प आदि विभिन्न योजनाओं एवं पहलों की शुरुआत की गई है।
स्वस्थ जनसंख्या सुनिश्चित करना: स्वस्थ जनसंख्या और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ मानव पूंजी का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करती हैं तथा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के बोझ को भी कम करती हैं।

बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने आयुष्मान भारत योजना, डिजिटल स्वास्थ्य मिशन, मिशन इंद्रधनुष (MI), जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA), मिशन परिवार विकास आदि योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ ही AIIMS जैसे अत्याधुनिक अस्पतालों के निर्माण में निवेश किया है।
अवसंरचना निर्माण: अवसंरचना (जिसमें सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे, पुल, रेलवे, जलापूर्ति, बिजली, दूरसंचार जैसे घटक शामिल हैं) आर्थिक विकास के आधार का निर्माण करती है, जिसमें जनसांख्यिकी के सतत् विकास के लिये महत्त्वपूर्ण भौतिक एवं संरचनात्मक प्रणालियाँ शामिल होती हैं।
सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का पूंजीगत व्यय वर्ष 2014 में 1.7% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में लगभग 2.9% हो गया।
सरकार द्वारा डिजिटल अवसंरचना को बढ़ावा देने के लिये डिजिटल इंडिया कार्यक्रम, भौतिक अवसंरचना के निर्माण के लिये प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना एवं भारतमाला योजना और सामाजिक अवसंरचना को प्रोत्साहित करने के लिये प्रधानमंत्री श्री योजना एवं हर घर नल योजना जैसी विभिन्न पहलें की गई हैं।
वे कौन-से कारक हैं जो जनांकिकीय आपदा का कारण बन सकते हैं?
उच्च बेरोज़गारी दर: जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ श्रम शक्ति में भी वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या का एक महत्त्वपूर्ण भाग बेरोज़गारी का सामना करता है।
भारत रोज़गार रिपोर्ट (India Employment Report) 2024 के अनुसार, भारत की कार्यशील आबादी वर्ष 2011 में 61% से बढ़कर वर्ष 2021 में 64% हो गई और वर्ष 2036 तक इसके 65% तक पहुँचने का अनुमान है। दूसरी ओर, आर्थिक गतिविधियों में शामिल युवाओं का प्रतिशत वर्ष 2022 में घटकर 37% रह गया।
वृद्ध होती जनसंख्या: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund- UNPF) की भारत वृद्धावस्था रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत की वृद्ध जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जिसकी दशकीय वृद्धि दर 41% है और वर्ष 2050 तक भारत की 20% से अधिक जनसंख्या वृद्धजनों की होगी।
वृद्धजन आबादी को स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक और वित्तीय सुरक्षा से संबंधित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
संसाधनों की कमी: जनसंख्या की तीव्र वृद्धि का संसाधनों के उपयोग और उनकी अभिगम्यता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
उदाहरण के लिये, दिल्ली और बंगलुरु जैसे शहर तथा राजस्थान जैसे राज्य गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं।
इसके अलावा, केंद्रीय जल आयोग (CWC) के एक हाल के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2001 में 1,816 क्यूबिक मीटर से घटकर वर्ष 2024 में लगभग 1,486 क्यूबिक मीटर रह जाएगी, जिससे देश जल संकट की ओर आगे बढ़ेगा।
निम्न जीवन स्तर: तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्न-आय और निम्न-मध्यम-आय वाले देशों के लिये सामाजिक क्षेत्रों पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि का वहन करना अधिक कठिन हो जाता है, जिसका सभी नागरिकों के लिये न्यूनतम जीवन स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इसके अलावा, गरीबी का दुष्चक्र शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार अवसरों तक पहुँच को सीमित कर जनांकिकीय लाभांश को कमज़ोर करता है।
उच्च प्रजनन दर और सामाजिक असमानता आर्थिक बोझ बढ़ाती है, जबकि खराब अवसंरचना और आर्थिक अस्थिरता विकास को बाधित करती है।

अनियोजित शहरीकरण: अनियोजित शहरीकरण के साथ अत्यधिक बोझग्रस्त अवसंरचना, यातायात भीड़भाड़ एवं प्रदूषण, शहरों के बाहरी इलाकों में मलिन बस्तियों का विकास, आवास संबंधी चुनौतियाँ और पर्यावरण क्षरण जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
भारत की शहरी आबादी वर्ष 2014 में 410 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2050 तक 814 मिलियन हो जाने की उम्मीद है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत में 4 नए महानगर और उभरेंगे, जिससे अनियोजित शहरीकरण तथा मलिन बस्तियों से संबंधित समस्याएं बढ़ सकती हैं।
भारत को जनांकिकीय लाभांश का दोहन करने के लिये आगे क्या करना चाहिये?
शिक्षा और कौशल विकास:
सभी जनसांख्यिकी वर्गों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता एवं पहुँच को बढ़ाया जाए, जहाँ हाशिये पर स्थित समुदायों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
रोज़गार-योग्यता बढ़ाने के लिये उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास को बढ़ावा दिया जाए।
डिजिटल अर्थव्यवस्था की मांगों को पूरा करने के लिये डिजिटल साक्षरता और तकनीकी कौशल में निवेश किया जाए।
रोज़गार सृजन:
निवेश आकर्षित करने और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये अनुकूल कारोबारी माहौल को बढ़ावा दिया जाए।
उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करें और स्टार्टअप के लिये सहायता प्रदान करें।
नीति आयोग का अनुमान है कि गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों की संख्या वर्ष 2020 में 7 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2030 में 20 मिलियन से अधिक होने की संभावना है। उन्हें सामाजिक सुरक्षा का आश्वासन प्रदान करने से मानव पूंजी को औपचारिक क्षेत्र में समाहित किया जा सकेगा।
स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण:
स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने और निर्भरता अनुपात को कम करने के लिये स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना एवं सेवाओं को सुदृढ़ किया जाए।
स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं को दूर करने के लिये निवारक स्वास्थ्य देखभाल उपायों और पोषण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
समग्र कल्याण की वृद्धि के लिये मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और सहायता प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाए।
समावेशन विकास और लैंगिक समानता:
लैंगिक समानता और सशक्तीकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियों को क्रियान्वित किया जाए; शिक्षा और रोज़गार तक समान पहुँच सुनिश्चित किया जाए।
ऐसी पहलों का समर्थन किया जाए जो सामाजिक सामंजस्य को बढ़ाएँ और असमानताओं को कम करें।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के आकलन के अनुसार वर्ष 2022 में केवल 24% महिलाएँ कार्यबल में शामिल थीं, इसलिये कार्यबल में महिलाओं का अनुपात बढ़ाना भविष्य के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
अवसंरचना विकास:
परिवहन, ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी सहित सुदृढ़ अवसंरचना के विकास में निवेश किया जाए।
तीव्र शहरीकरण और प्रवासन प्रवृत्तियों को समायोजित करने के लिये शहरी योजना-निर्माण और विकास में सुधार लाया जाए।
ऐसी सतत् अवसंरचना परियोजनाएँ सुनिश्चित की जाएँ जो आर्थिक विकास को बढ़ावा दें और जीवन स्तर को उच्च करें।
कृषि से औपचारिक क्षेत्र की ओर संक्रमण:
कृषि क्षेत्र में रोज़गार की हिस्सेदारी वर्ष 2018-19 में 4% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 45% हो गई, जबकि केवल 20% नियोजित लोग ही वेतन रोज़गार से संलग्न हैं और लगभग 9% औपचारिक वेतन रोज़गार में नियोजित हैं।
कार्यबल को औपचारिक क्षेत्र में स्थानांतरित करने से प्रच्छन्न रोज़गार की समस्या का समाधान करने में मदद मिलेगी।
नीति और शासन:
ऐसी व्यापक नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन किया जाए जो जनांकिकीय लाभांश को प्राथमिकता देती हों।
ऐसी पहलों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये शासन तंत्र को सुदृढ़ किया जाए।
प्रणालीगत चुनौतियों का समाधान करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जाए।

 source-the Hindu

© copyright: BIHARI IAS

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